Tuesday, July 27, 2010
सुवर्णमुद्रा
सुवर्णमुद्रा:
नुकतंच मी पुणे मराठी ग्रंथालयामधून शांता शेळके यांचं ’सुवर्णमुद्रा’ नावचे पुस्तक आणलं. त्यात छोट्या-छोट्या कविता, विचार, उतारे यांचे संकलन आहे. त्यातलेच काही वेचक इथे देत आहे!
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इशारा:
तुम्ही जेव्हा उत्कट आनंदाच्या ऐन भरात असाल तेव्हा कुणालाही, काहीही वचन, आश्वासन देऊ नका आणि तुम्ही जेव्हा अत्यंत संतापलेले असाल तेव्हा कुणाच्या कसल्याही पत्राचे उत्तर देऊ नका
- चिनी म्हण
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सुख:
कुणी तरी आपल्यावर उत्कटपणे प्रेम करणारे आहे या जाणीवेइतके सुख दुसऱ्या कोणत्याही गोष्टीत नसते
व्हिक्टर ह्युगो
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एकरुपता:
लवण मेळविता जळे । काय उरले निराळे ॥
तैसा समरस झालो । तुजमाजी हरपलो ॥
अग्निकर्पुराच्या मेळी । काय उरली काजळी ॥
तुका म्हणे आता । तुझी माझी एक ज्योती ॥
~ संत तुकाराम
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जुनी पत्रे:
जुनी पत्रे वाचताना खूप गंमत वाटते. आनंदही होतो. आणि सर्वात आनंदाची गोष्ट ही की त्या पत्रांना उत्तरे लिहिण्याची जबाबदारी आपल्यावर नसते!
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स्त्री:
एक पर्शियन कवी म्हणतो: जागाच्या प्रारंभकाळी अल्लाने एक गुलाब, एक कमळ, एक कबूतर, एक सर्प, थोडासा मध, एक सफरचंद आणि मूठभर चिखल घेतला. या साऱ्यांचे जेव्हा त्याने मिश्रण केले तेव्हा त्यातून स्त्री निर्माण झाली!
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परपुरषाचे सुख:
परपुरषाचे सुख भोगे तरी ।
उतरोनि करी घ्यावे शीस ॥
संवसारा आगी आपुलेनि हाते ।
लावुनी मागुते पाहू नये ॥
तुका म्हणे व्हावे तयापरी धीट ।
पतंग हा नीट दीपावरी ॥
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कळपाचे नियम:
कळपात राहून कळपाचे नियम मोडणाराला माणसे निष्ठूर शासन करतात. समाज त्याचे प्रत्यक्ष वाभाडे काढत नसेल पण तो त्याला समाजात वावरणे अशक्य करून सोडतो. वेगळ्या वाटेने जाणाऱ्या माणसांची हलकेहलके पण अगदी पद्धतशीर रीतीने हकालपटटी केली जाते. तो माणूस फारच ताकदवान असेल तर इतर लोक त्याचे काही वाकडे करु शकत नाहीत. मग नाइलाजाने ते त्याला आपल्यात सामावून घेतात. वेळप्रसंगी त्याच्यापुढे लोचटपणा करतात. लाचारीही पत्करतात. पण या साऱ्यामागे एक स्वच्छ नकार, झिडकार दडलेला असतो. माणसाच्या या दुटप्पी वर्तनापेक्षा कळपाचे नियम न पाळणाऱ्या पशूंचा किंवा पक्ष्यांचा सजातियांनी केलेला क्रूर वध अधिक दयाळूपणाचा आहे अस वाटत नाही का?
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विनवणीः
दूर लाजुन पळतेस कशाला?
का म्हणतेस तू ’नका-नका’?
घडेल तेव्हा संग घडो पण
तूर्त एक घेऊ दे मुका !
- पारंपारिक लावणी
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अविद्या:
विद्येविना मती गेली
मतीविना नीती गेली
नीतीविना गती गेली
गतीविना वित्त गेले
वित्तविना शूद्र खचले
इतके अनर्थ एका अविद्येने केले
- महात्मा ज्योतिबा फुले
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प्रीतिसंगम:
दोघेही एकमेकांवर रुसली होती. अन्तःप्रेरणेने त्यांनी एकमेकांकडे चोरुन कटाक्ष टाकले! त्यांच्या द्रुष्टीचे मीलन झाले तेव्हा दोघेही एकदम हसली!
- गाथासप्तशती
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कुणासाठी कोण:
कुणासाठी कोण देही जपतसे प्राण
कुणासाठी कोण जीव टाकते गहाण !
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उच्छादी वारा:
कसा उच्छादी हा वारा
केळ झोडपून गेला
किती झाकशील मांडी?
नाही मर्यादा ग ह्याला !
- पु. शि. रेगे
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आयुष्य:
हे आयुष्य म्हणजे हुंदके, स्फुंदणे, उसासे आणि हसणे या साऱ्यांचे मिळून एक विचित्र मिश्रण आहे. पण त्यात स्फुंदण्याचे प्रमाण जरा जास्त असते.
- ओ. हेन्र्री
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मला नाही:
तुला बाबा मला बाबा
तुला दादा मला दादा
तुला ताई मला ताई
तुला आई मला नाही
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एक क्षण:
एक क्षण असतो मुक्त बोलण्याचा
एक क्षण असतो मौन पाळण्याचा !
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घातक:
भलत्या वेळी सांगितलेले सत्य असत्याइतकेच घातक असते.
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जुने ठवणे मीपण आकळेना
जीवा श्रेष्ठ ते स्पष्ट सांगोनि गेले
परी जीव अज्ञान तैसेचि ठेले ।
देहे बुद्धिचे कर्म खोटे टळेना
जुने ठेवणे मीपण आकळेना ॥
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काळ्या निळ्या ढगातः
काळ्या निळ्या ढगात कडाडते वीज
डोळ्यांतून कुठे तरी उडून जाते नीज
गहन रात्रीच्या पदरात स्वप्नांचा संभार
मनात जाग्या होतात आशा अपरंपार !
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संपर्क माध्यमेः
प्रेम, लहान मुले आणि आपण करत असलेले काम - माणसाच्या भोवतालच्या जगाशी उत्कट संपर्क साधणारी ही तीन संदर माध्यमे आहेत
- बर्ट्रान्ड रसेल
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मित्र ओळखाः
मित्र तयार करता येत नाहीत. ते जीवनात येतच असतात. पण आपण त्यांची ओळख पटवुन घ्यावी लागते. आणि एकाकी, स्नेहशून्य माणसांचे हेच मोठे दुखः असते. त्यांच्याभोवती माणसे वावरत असतात. पण एकाकी माणसांना त्यांच्यातला स्नेहभाव ओळखता येत नाही.
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टीकाखोरः
मला टीका करण्याची फार खोड आहे. माझी मते उकलून दाखवताना मी नेहेमी दुसऱ्यांच्या मनांतील वैगुण्ये दाखवीत असतो, आणि माझ्या लेखनात जर माझी ही खोड एकपट दिसत असली तर माझ्या बोलण्यानं ती दुप्पट दिसून येते. दोष काय आहेत हे पाहण्याची प्रव्रुत्ती माझ्यात अगदी प्रखर आहे, नसावी इतकी प्रखर आहे. भोवतालच्या लोकांच्या बोलण्यातील, विचारांतील चुका दाखवणे ही माझी जित्याची खोड आहे ती काही केल्या जात नाही. माझे मलाच त्याचे वाईट वाटते पण स्वभावाला औषध नाही !
- हर्बर्ट स्पेन्सर
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चुकलेच!
येवढे प्रदीर्घ आयुष्य माझ्या वाट्याला येणार आहे हे जर मला थोडे आधी कळले असते तर मी माझ्या प्रक्रुतीची जरा अधीक काळजी घेतली असती !
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प्राण की पैसा?
गुंडोपंत रानातून एकटेच प्रवास करत होते. वाटेत चोरट्यांनी त्यांना अकस्मात गाठले. ’चल, काय पैसे जवळ असतील ते काढ’ चोरट्यांचा नायक दरडावून त्यांना म्हणाला, ’नाही तर तुझा जीवच घेतो बघ. बोल. पैसा की प्राण?’ ’तर मग तुम्ही माझे प्राणच घ्या’ गुंडोपंत म्हणाले, ’मजजवळच्या पैशाला मात्र हात लावू नका. कारण तो मी आपल्या म्हातारपणासाठी जमवत आलो आहे !’
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एकटेपणाचे मह्त्व:
एकटे राहण्याची सवय करुन घ्या. एकटेपणाचे फार फायदे आहेत. ते गमावू नका. स्वतःचा सहवास स्वतः अनुभवणे, त्यात रमणे ही फार आनंददायक गोष्ट आहे. ती साध्य झाली तर तुम्हाला इतरांच्या संगतीशिवायही सुखासमाधानाने राहाता येईल. एकदा अनुभव तर घेऊन पाहा !
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थोडे तुझे, थोडे माझे
थोडे तुझे, थोडे माझे । सारे आपुल्या दोघांचे
कुठे शुभ्र, कुठे अभ्र । रंग अनोखे नभाचे
काही प्राप्त, काही लुप्त । काही फक्त क्षितिजाचे
नाही खंती - जे जे हाती । ते ते आनंदघनाचे !
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काळ:
माणूस जगतो काही काळ
आणि जातो मरून
काळ आपला शांतपणे
बघत असतो दुरून !
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शिकण्यासारखे काही:
आम्ही दूध पितो
मांजरही दूध पिते...
पण मांजराच्या ते अंगी लागते.
आम्ही मरेस्तोवर जगतो
मांजरही मरेस्तोवर जगते...
पण मांजराला ब्लडप्रेशरचे दुखणे नसते !
आम्हाला तेही कळत नाही...
पण त्याचा आत्मा भटकत राहिल्याचे कोणी ऐकले नाही !
प्रुथ्वीवरचा सर्वांत हुषार प्राणी
माणूस असेलही...
पण त्यान्ही कधी तरी निवांतपणे
म्यॊंव करायला हरकत नाही !
- एक ग्रीटींग कार्ड (खास ’माऊ’ साठी!)
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नको:
नको शब्दांची आरास, नको सुरांचे कौतुक
तुझ्या माझ्या मनातले तुला मलाच ठाऊक !
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सागर पोहत बाहुबळाने:
सागर पोहत बाहुबळाने नाव तयासि मिळो न मिळो रे
स्वयेच तेजोनिधे जो भास्कर तदग्रुहि दीप जळो न जळो रे
जो करि कर्म अहेतु निरंतर देव तयासि वळो न वळो रे
झाली ओळख ज्यास स्वतःची वेद तयासि कळो न कळो रे
- श्री. रा. बोबडे
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सर्व...एकत्र
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ReplyDeletehello.. do you have the complete version of the last one? सागर पोहत बाहुबळाने? I heard there was more to it than just the 4 lines..
ReplyDeleteThanks,
Aditi